देहरादून, । 23 सितम्बर को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिससे आयुर्वेद-इस प्राचीन जीवन-विज्ञान को मान्यता दी जा सके और इसके महत्व को आधुनिक युग में भी प्रचारित किया जा सके। जब आज की ज़िंदगी तनाव, नींद की कमी, चिंता, वज़न की दिक्कतों और हार्मोनल गड़बड़ियों से घिर जाती है, तो कई लोग राहत पाने के लिए आयुर्वेद की शरण लेते हैं। आयुर्वेद सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक समग्र कला है, जो मन, शरीर और आत्मा के संतुलन पर आधारित है। प्राचीन आयुर्वेद हमें सिखाता है – समय पर उठो, योग और ध्यान करो, सात्त्विक भोजन खाओ और बादाम जैसे पोषक विकल्पों को अपनाओ, ताकि भागदौड़ भरी ज़िंदगी में भी स्थिरता और ऊर्जा बनी रहे। आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. मधुमिता कृष्णन विभिन्न आयुर्वेद आधारित जीवनशैली उपायों को साझा करती हैं और बताती हैं कि ये प्राचीन प्रथाएं आज के दौर में हमें कैसे लाभ पहुंचा सकती हैं। यह संदेश हर वर्ष 23 सितंबर को मनाए जाने वाले राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस पर और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है।
सुबह जल्दी उठना आयुर्वेद कहता है कि हमारी दिनचर्या को प्रकृति के साथ जोड़ना चाहिए। इसलिए सुबह सूरज उगने से लगभग एक घंटे पहले, यानी ब्राह्म मुहूर्त में उठने की सलाह दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस समय उठने से उम्र बढ़ती है और बीमारियों से बचाव होता है। साथ ही, इससे मन शांत रहता है, सोच में साफ़गोई आती है और दिन की शुरुआत तरोताज़ा होती है।
आयुर्वेद में आहार को औषधि के रूप में माना गया है। यह ताजे फल, सब्जियाँ, साबुत अनाज, दालें तथा बादाम जैसे मेवों के सेवन पर बल देता है, जिन्हें प्राण (जीवनशक्ति) से भरपूर माना जाता है। इसके विपरीत, आज की तेज़ रफ्तार जीवनशैली में प्रचलित प्रोसेस्ड और रेडी-टू-ईट भोजन हानिकारक माने जाते हैं। पूर्व नियोजित, सरल एवं पौष्टिक भोजन कृ जैसे कटे हुए फल जो सभी धातुओं (जपेनमे) का पोषण करते हैं, या मुट्ठीभर बादाम, जो शरीर को पोषण देने के साथ-साथ मन को भी संतुष्ट करते हैं कृ संतुलन बनाए रखने में सहायक हो सकते हैं। विशेष रूप से भिगोए हुए बादाम, जब प्रतिदिन सुबह सेवन किए जाएं, तो वे शरीर को मज़बूती प्रदान करते हैं, त्वचा को स्वस्थ रखते हैं और दोषों का संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं।